हम तो बेनाम इरादों के मुसाफिर हैं वसीम… कुछ पता हो तो बताएं कि किधर जाते हैं…

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वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय की कलम से

छत्तीसगढ़ की एक मरवाही तथा पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश की 28 विधानसभा क्षेत्रों में संपन्न विधानसभा उपचुनाव के परिणाम 10 नवंबर को आ जाएंगे। म.प्र. में तो उपचुनाव के परिणाम से साबित होगा कि शिवराज सिंह की भाजपा सरकार राज करेगी या कांग्रेस की सरकार पुन: बन जाएगी। हालांकि भाजपा तथा कांग्रेस दोनों अपनी सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं पर विधानसभा सीटों का गणित क्याकहता है इस पर चर्चा जरूरी है।
म.प्र. में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को उन्हीं की पार्टी के विधायकों द्वारा इस्तीफा देने के कारण बहुमत खोकर सरकार से अलग होना पड़ा वहीं इस्तीफे के बाद के अंकों के गणित के चलते भाजपा की शिवराज सरकार काबिज हो गई, बाद में कांग्रेस छोडऩे वाले विधायक भाजपा में आ गये और इस उपचुनाव में सभी बतौर भाजपा प्रत्याशी समर में उतरे हैं वैसे बड़ी संख्या में विधायकों के दलबदल के पीछे ज्योतिरादित्य सिंधिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, इसके कारण उन्हें भाजपा ने राज्यसभा सदस्य बना दिया है।

म.प्र. में कुल 230 विधायक सीटे हैं उनमें से एक दमोह के कांग्रेस विधायक राहुल लोधी के उपचुनाव के दौरान ही इस्तीफा दिये जाने के कारण वर्तमान में 229 कुल सीटे हैं। उपचुनाव के परिणाम के पहले भाजपा के पास 107 कुल विधायक हैं तो उसे म.प्र. विधानसभा में उपचुनाव के बाद बहुमत साबित करने 8 सीटें चाहिये यानि उपचुनाव में केवल 8 सीटें जीतकर 115 सीटें हासिल करने पर शिवराज सिंह की सरकार बच सकती है। इधर कांग्रेस के पास वर्तमान में 87 विधायक संख्या है और उसे सरकार बनाने सभी 28 सीटें उपचुनाव में जीतने की जरूरत है तब बहुमत का आंकड़ा 115 पहुंच सकता है तभी कांग्रेस की सरकारपुन: म.प्र. में बन सकती है। वैसे यदि कांग्रेस 28 में 21 सीटें भी जीत ले तो भी सात बसपा, सपा और निर्दलीय विधायकों के सहयोग से अपनी सरकार बना सकती है क्योंकि कमलनाथ सरकार इन्हीं की मदद से पहले बनी थी। बहरहाल आंकड़ों के हिसाब से भाजपा की स्थिति कुछ बेहतर लग रही है पर यदि म.प्र. की जनता ने दलबदलुओं को सबक सिखाने की यदि ठानी होगी यदि एक तरफा कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया होगा, कोई लहर कांग्रेस के पक्ष में चल रही होगी (हालांकि ऐसा कुछ लग तो नहीं रहा है) तभी कांग्रेस की म.प्र. में वापसी संभव होगी पर प्रजातंत्र में सब कुछ संभव है, जनता ही तयकर चुकी है कि किसकी सरकार म.प्र. में रहेगी, 10 की शाम तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

मरवाही में प्रतिष्ठा दांव पर….

छत्तीसगढ़ की एकमात्र मरवाही विधानसभा उपचुनाव प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी की मृत्यु के बाद रिक्त हुई थी और वहां उपचुनाव में 19 साल में पहली बार अजीत जोगी परिवार से ही नहीं जोगी कांग्रेस से भी कोई प्रत्याशी चुनाव समर में नहीं है। पूर्व विधायक अमित जोगी तथा उनकी पत्नी ऋचा जोगी अपने जातिगत प्रमाणपत्र की प्रमाणिकता साबित नहीं करने के चलते जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा चुनाव लडऩे से वंचित करने के कारण चुनाव समर में नहीं है हालांकि यहमामला बड़ी अदालतों में लंबित है। अजीत जोगी परिवार ने इस चुनावमें भाजपा के प्रत्याशी को समर्थन देने की घोषणा की है तथा स्व. अजीत जोगी के साथ सहानुभूति लहर भी चलाने का भी पुरा प्रयास किया है। पिछले विस चुनाव में कांग्रेस की लहर के बावजूद अजीत जोगी को 76 हजार से अधिक मत मिले थे और 46 हजार से अधिक मतों से विजयी रहे थे। इस बार कांग्रेस ने इस उपचुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना दिया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं 3 दिन मरवाही क्षेत्र में रहे तो उनके मंत्रिमंडल के सदस्य, विधायक तथा कांग्रेस संगठन के लोगों ने वहां डेरा डाल दिया था। कांग्रेस वहां पेण्ड्रारोड-मरवाही को जिला बनाने सहित विकास कार्यों को लेकर अपनी जीत की बात कर रही है तो प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने भी वहां अपनी ताकत झोंक दी थी उसे जोगी कांग्रेस का भी समर्थन मिल गया है उसे लगता है कि जोगी परिवार को विस चुनाव लडऩे से वंचित करने सहित अजीत जोगी की मृत्यु से सहानुभूति का लाभ उसे मिल सकता है। वैसे कांग्रेस के पास अभी 79 विधायक हैं, यदि मरवाही में उसे जीत मिलती है तो विधायक संख्या 80 हो सकती है तो भाजपा के पास कुल 14 विधायक है जीतने पर यह संख्या 15 हो सकती है दोनों को हार जीत से कोई विशेष लाभ नहीं होगा पर जोगी कांग्रेस के लिए पारिवारिक विरासत जिंदा रखना जरूरी है तो इस चुनाव से जोगी कांग्रेस का भविष्य भी जुड़ा है। अभी 4 जोगी कांग्रेस के विधायक हैं जिसमें डॉ. रेणु जोगी/धर्मजीत सिंह तो उपचुनाव में भाजपा के समर्थन के साथ है तो 2 विधायक देवव्रत सिंह/ प्रमोद शर्मा ने कांग्रेस के समर्थन का ऐलान कर दिया है। वे तो कांग्रेस में शामिल होने भी तैयार है पर कुछ तकनीकी कारण इसमें बाधा बन रहे हैं। कुल मिलाकर मरवाही उपचुनाव प्रदेश की भावी राजनीति तय करेगा ऐसा लगता है।

रायपुर के कलेक्टर और….

अविभाजित म.प्र. के समय से तथा छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद राजधानी रायपुर के कलेक्टर का बड़ा रूतबा होता है, इतिहास गवाह है कि रायपुर का कलेक्टर, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव के पद तक पहुंच चुके हैं।
अविभाजित म.प्र. के समय अपने कार्यों के लिए चर्चित डीजी भावे 1965-67 तक कलेक्टर रायपुर रहे जो बाद में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे तो 1978-81 तक रायपुर के कलेक्टर (तब वर्तमान महासमुंद, गरियाबंद, धमतरी, बलौदाबाजार- भाटापारा जिला शामिल था) रहे अजीत प्रमोद कुमार जोगी बाद में राज्यसभा, लोकसभा सदस्य होकर छग राज्य बनने पर प्रथम मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे। वहीं रायपुर में ही कलेक्टर नजीब जंग (81-83) ने अजीत जोगी से कार्यभार सम्हाला और बाद में वे दिल्ली राज्य के उपराज्यपाल भी बने थे। वहीं 1981-1988 में रायपुर के कलेक्टर रहे सुनील कुमार बाद में छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्य सचिव बने थे। रायपुर में ही कलेक्टर रहे आर.पी. मंडल वर्तमान में मुख्य सचिव छग है और 30 नवंबर को उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है हालांकि उनका कार्यकाल 6 माह बढ़ाने केंद्र सरकार को पत्र भी प्रेषित किया गया है। वहीं भावी मुख्य सचिव के रूप में अमिताभ जैन को देखा जा रहा है। वे भी 2000 से 2003 तथा 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान रायपुर के कलेक्टर रह चुके हैं। वैसे रायपुर में ही कुछ माह कलेक्टर रहे सी के खेतान, अविभाजित म.प्र. से छत्तीसगढ़ गठन तक 1998-2000 तक कलेक्टर रायपुर रहे एम.के. राऊत मुख्य सचिव बनने की दौड़ में पिछड़ गये। वैसे सीके खेतान तो मंडल के बैचमैंट हैं पर विवादास्पद होने के चलते वे अभी भी मुख्य सचिव की दौड़ से लगभग बाहर हैं। बहरहाल 30 नवंबर के बाद अगला मुख्य सचिव कौन बनता है यह स्थिति लगभग स्पष्ट हो चुकी है केवल आदेश की औपचारिकता ही बाकी है।
इधर रायपुर के एक और कलेक्टर की भी चर्चा जररी है। मूल छत्तीसगढिय़ा ओ.पी. चौधरी भी रायपुर के कलेक्टर रहे हैं। लंबा चौड़ा प्रशासनिक कैरियर छोड़कर उन्होंने न जाने किसकी सलाह पर नौकरी छोड़कर भाजपा की सदस्यता लेकर विधानसभा चुनाव लड़ा और पराजित भी हो गये। उनके बारे में कहा जाता है कि वे यदि नौकरी नहीं छोड़ते तो कम से कम अतिरिक्त मुख्य सचिव तो जरूर बन ही जाते…।

और अब बस…

  • 0 छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में श्रीराम का मंदिर बनाने वाले मो. अकबर , भूपेश सरकार के मंत्रिमंडल में वजनदार मंत्री हैं।
  • 0 भूपेश सरकार के किस मंत्री के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने मोर्चा खोल दिया है।
  • 0 छत्तीसगढिय़ा मूल के दिनेश कुमार शर्मा को पदोन्नत कर विधानसभा का सचिव बना दिया गया है। बहुत जल्द ही वे विधानसभा में महत्वपूर्ण पदभार सम्हाल सकते हैं। ज्ञात रहे कि वर्तमान में प्रमुख सचिव गंगराड़े दिसंबर में सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
  • 0 आर्थिक अपराध शाखा ने एसीबी-ईओडब्लु के नाम पर वसूली करने वाले एक कथित पत्रकार को भी गिरफ्तार किया है, वह एक बड़े पूर्व पुलिस अधिकारी का रिश्तेदार हैं।
  • 0 हत्या के मामले में चर्चा में आये एक चर्चित अफसर तथा कुछ तथाकथित पत्रकारों पर भी सरकार की नजर है जो पीत पत्रकारिता के नाम पर वसूली में लगे है तथा कुछ अफसरों की चरित्र हत्या के लिए अनवरत प्रयासरत हैं।
  • 0 कुछ पुलिस अधीक्षकों की तबादला सूची काफी समय से लंबित है, किसी न किसी कारण वह जारी होने से टलती जा रही है ज्ञात रहे कि जशपुर, जगदलपुर और राजनांदगांव के पुलिस अधीक्षक भी जनवरी में डीआईजी पदोन्नत हो जाएंगे।