वहां तूफान भी हार जाते हैं.. जहां कश्तियां जिद पे होती है…

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वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय

दिल्ली में विधानसभा चुनाव के परिणाम ‘आप’ और अरविंद केजरीवाल के पक्ष में गये हैं। केजरीवाल उसी दिल्ली में तीसरी बार अपनी सरकार बनाएंगे जहां से नरेन्द्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री देश चलाते हैं। बहरहाल दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की बुरी हार फिर चर्चा में है। दिल्ली विधानसभा को चुनाव में तो भाजपा ने चुनाव में किये गये वायदों को दरकिनार करके हिन्दू गौरव जैसे मुद्दों में चुनाव लडऩे में कोई संकोच नहीं किया, गोलीमार देना चाहिये, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान का मैच, शाहीनबाग मुद्दों को जमकर उठाया गया, केजरीवाल ने पूरा चुनाव अपने कार्यकाल सहित शिक्षा, स्वास्थ्य, पीने का साफ पानी, प्रदूषण और बिजली के सुधार पर केन्द्रित किया था, एक टीवी कार्यक्रम में एंकर द्वारा हनुमान चालीसा से जुड़ा एक सवाल पूछा और उन्होंने सस्वर हनुमान चालीसा का पाठ कर उन लोगों के सोच पर भी हमला किया जो उन्हें हिन्दु विरोधी ठहरा रहे थे। इधर भाजपा के गली-कूचे के नेताओं सहित कुछ शीर्ष नेताओं ने तो दिल्ली की 70 सीटों वाली विधानसभा चुनाव जीतने हिन्दुस्तान-पाकिस्तान, शाहीनबाग, कश्मीर और राममंदिर के नाम पर फोकस करने की बात करते रहे।

ऐन विधानसभा चुनाव के पहले राममंदिर ट्रस्ट की घोषणा करके भाजपा ने चुनावी विमर्श में एक और महत्वपूर्ण मुद्दा भी जोडऩे का प्रयास किया। अगर इस घोषणा के बाद आम आदमी पार्टी के लोग चुनाव आयोग जाते और आचार संहिता की अनदेखी का मामला उठाते तो उनको राममंदिर विरोधी भी ठहराने में भाजपा पीछे नहीं रहती। बहरहाल केजरीवाल दिल्ली में अपने 5 साल के कार्यकाल में किये गये विकास कार्यों पर ही वोट मांगते रहे। उन्होंने तो यहां तक कहा कि यदि मेरी सरकार ने 5 साल में कार्य नहीं किया है तो मुझे वोट मत देना, इतनी साफगोई से बात करने का किसी मुख्यमंत्री या पार्टी नेता का पहला अवसर था।

बहरहाल दिल्ली में विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना था। पार्टी का सबसे बड़़ा मुद्दा राममंदिर के निर्माण की घोषणा चुनाव पूर्व करना तथा मंदिर निर्माण ट्रस्ट की घोषणा करना भी था कोई भी राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी समझ सकता है कि इसका भी लाभ लेने की रणनीति भाजपा की थी। पुलवामा सहित पाक में घुसकर मारने के नाम पर पिछला लोकसभा चुनाव का परिणाम जरूर भावनात्मक मुद्दे पर भाजपा के पक्ष में गया पर पिछले 2 सालों में 7 राज्यों में भाजपा की असफलता की चर्चा भी रही। छत्तीसगढ़ में 15 सालों की डॉ. रमन सिंह सरकार को 15 सीटों में सिमटा दिया गया, राजस्थान, म.प्र., झारखंड, महाराष्ट्र में गैर भाजपा सरकार बनी, हरियाणा में जोड़-तोड़ कर जरूर भाजपा की फिर सरकार बनी और दिल्ली में तो 70 सीटों में महज 8 सीटों पर ही भाजपा के विधायक जीत सके, 62 सीटों पर जीतकर आप में भाजपा के तमाम भावनात्मक मुद्दों पर पानी फेर दिया दिल्ली के विधानसभा चुनावमें भाजपा सरकार के लगभग सभी मंत्री, 200 के आसपास सांसद, स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह सहित भाजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने भी कमान संभाली पर सरकार बनाने में असफल रहे वहीं कुछ सालों पहले ही राजनीति में जन्मी ‘आप’ पार्टी तीसरी बार सरकार बनाने में सफल रही। जहां तक कांग्रेस की बात है तो उसे इस बार भी एक भी सीट नहीं मिली वैसे यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में वह रूचि नहीं ली जिसकी उम्मीद की जा रही थी। राहुल और प्रियंका ने एक-दो स्थानों पर जरूर प्रचार किया।

राजमाता नहीं रही…..

सरगुजा राज परिवार की बहुरानी बाद में राजमाता बनी, अविभाजित म.प्र. में प्रकाशचंद्र सेठी तथा अर्जुन सिंह के मंत्रिमंडल में बतौर मंत्री शामिल श्रीमती देवेन्द्र कुमारी देवी सिंहदेव का निधन कम से कम छत्तीसगढ़वासियों के लिए अपूरणीय क्षति ही माना जाएगा। पति एम.एम. सिंहदेव के प्रशासनिक अफसर के साथ कदमताल करती हुई देवेन्द्र कुमारी को नौकरी के चलते सरगुजा छोड़कर देश प्रदेश में कई जगहों पर रहना पड़ा था।

13 जुलाई 1933 को हिमाचल प्रदेश के जुब्बल राजपरिवार में जन्मी देवेन्द्र कुमारी का विवाह 21 अप्रैल 1948 को सरगुजा राजपरिवार के एम.एम. सिंहदेव के साथ हुआ था। विवाह के बाद वे अपने पति एम.एम. सिंहदेव के साथ इलाहाबाद चली गई तब उनके पति वहां पढ़ाई करते थे। इलाहाबाद में ही छग सरकार के वरिष्ठमंत्री टी.एस. सिंहदेव (बाबा) का जन्म हुआ था। बाद में पति के आईएएस होने के बाद वे पति के संग जबलपुर, मंदसौर, रतलाम, छतरपुर में कलेक्टर होने के दौरान साथ रही और बाद में सचिव, प्रमुख सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव सहित म.प्र. के मुख्य सचिव होने पर भोपाल में भी लंबे समय तक रहीं पर उनका सरगुजा आना-जाना लगा रहता था। वैसे कांग्रेस की राजनीति में उनकी रूचि भी रही, 1977 के आपातकाल में देश की बदली परिस्थिति में इंदिरा गांधी को जब तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार ने जेल में बंद किया था। तब भोपाल में कांग्रेस की ओर से जेल भरो आंदोलन का नेतृत्व देवेन्द्र कुमारी सिंहदेव ने किया था, तब लाठीचार्ज में वे भी घायल हुई थीं, उन्हें जमानत पर रिहा करने की पेशकश हुई थी पर उन्होने टूटे हाथ व स्ट्रेचर में ही जेल जाना पसंद किया था। देवेन्द्र कुमारी ने महात्मा गांधी से मुलाकात की थी और दूसरे दिन ही बापू की हत्या हो गई थी। बहरहाल अपने पांच बच्चों को सम्हालने वाली, प्रशासनिक पति की सहयोगी की भूमिका के साथ ही 1972-77 तथा 80-85 में क्रमश: अंबिकापुर तथा बैकुंठपुर से विधायक जून 1974 में प्रकाशचंद सेठी के मंत्रिमंडल में वित्त एवं पृथक आगम तथा अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में 80-85 के दौरान लघु सिंचाई मंत्री का भी दायित्व सम्हाला था। तब छत्तीसगढ़ सहित सरगुजा में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार भी हुआ था। वेदांता अस्पताल में उनका हाल ही में निधन हुआ और अभी भी सरगुजा के लोग उनकी याद करते हैं। ज्ञात रहे कि उनके पति महाराजा मदनेश्वर शरण सिंह देव का निधन 24 जून 2001 को हुआ था।

पुलिस में खेमाबाजी

पुलिस विभाग में उच्च नेतृत्व में खेमाबाजी कोई नई बात नहीं है। छग जब से अलग हुआ है तो डीजीपी जूनियर को बनाया जाता थाऔर सीनियर का खेमा अलग ही होता था। आपसी तकरार होती ही रहती थी। पुलिस मुख्यालय में भी पदस्थ अफसर इसके शिकार भी होते थे पर छग में भूपेश बघेल की सरकार बनने तथा मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार रहे ताम्रध्वज साहू के गृहमंत्री होने के बाद डीजीपी दुर्गेश माधव अवस्थी को बनाया गया है वे सूबे के सबसे वरिष्ठ आईपीएस अफसर हैं जाहिर है कि पहली बार उनसे वरिष्ठ अफसर छग में पदस्थ नहीं है पर लगता है कि उन्हें भी पूरी तरह खुलकर पुलिसिंग करने में दिक्कत हो रही है। पुलिस मुख्यालय के बाहर तैनात एक आईपीएस अफसर की पुलिस मुख्यालय में दखलंदाजी कुछ अधिक ही बढ़ गई है यहां तक की पदोन्नति तथा पदस्थापना में भी वे कई बार अपने मन की चला लेते हैं। असल में पूर्ववर्ती सरकार के समय भी उनका अच्छा खासा दखल था और नई कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भी वे कुछ भारी साबित हो रहे हैं। कुछ फील्ड में पदस्थ अफसर इसलिए कुछ परेशान हैं कि डीजीपी का कहा माने या तबादले… पदोन्नति में दखल रखने वाले पुलिस मुख्यालय के बाहर पदस्थ उक्त अफसर की तीमारदारी करें… बहरहाल डीजीपी अवस्थी भी भूपेश सरकार की पसंद है और उक्त अफसर भी सरकार के पसंदीदा अफसर हैं आश्चर्य तो यह है कि गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू है पर तबादला, पदस्थापना की उन्हें जानकारी मीडिया से ही मिलती है। हाल ही में एक नक्सली वारदात के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है तो सवाल उठता है कि क्या गुप्तवार्ता के अफसर भी उन्हें जानकारी देना जरूरी नहीं समझते हैं।

और अब बस….

  • 10 महापौर कांग्रेस के बनें, अब 20 जिला पंचायत और 110 जनपद पंचायत अध्यक्ष भी कांग्रेस का बनने का दावा किया जा रहा है।
  • मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव विदेशयात्रा पर गये हैं पर उनके एक करीबी अफसर स्वयं को साथ नहीं ले जाने पर दुखी है।
  • रायपुर के पुलिस कप्तान तथा पश्चिम के विधायक के बीच ‘यातायात चलानÓ विवाद पर मुख्यमंत्री के सामने हल निकलेगा ऐसा लगता है।
  • छत्तीसगढ़ के किस जिले की पुलिस पर आरोप लग रहा है कि वहां जंगल राज कायम हो चुका है।