हैदराबाद हाउस पर अमेरिकी विदेश और रक्षा मंत्रियों के साथ बैठक शुरू.. चीन को घेरने की बन सकती रणनीति…

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भारत और अमेरिका के विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों के बीच तीसरी 2+2 बैठक आज दिल्ली में हो रही है। इससे पहले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर ने शहीदों को श्रद्धांजलि दी। पोम्पियो और मार्क एस्पर सोमवार को दिल्ली पहुंचे थे। इसके बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एस्पर से हैदराबाद हाउस में मुलाकात की। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी अमेरिकी विदेश मंत्री पोम्पियो से चर्चा की।

मुलाकात के बाद राजनाथ ने कहा कि यह बैठक दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को व्यापक स्तर पर ले जाने के उद्देश्य से हुई है। 2+2 वार्ता पहले से तय थी, लेकिन, भारत-चीन और अमेरिका-चीन की बीच पैदा हुई ताजा कड़वाहट को देखते हुए इसे चीन की घेराबंदी के तौर पर देखा जा रहा है। जयशंकर ने कहा कि बैठक में दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों की मजबूती पर बात हुई।

हैदराबाद हाउस में 2+2 बैठक शुरू हुई।
पोम्पियो और एस्पर ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर जाकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी।

2+2 वार्ता क्या है?
यह दो देशों के रक्षा और विदेश मंत्रालयों में होती है। पहले भी 2 बैठकें हो चुकी हैं।

इस बार एजेंडा क्या?
प्रशांत क्षेत्र में चीन की दखलंदाजी और लद्दाख में उसका आक्रामक बर्ताव वार्ता में शामिल होगा। इसे देखते हुए बेका समझौता हो सकता है।

बेका क्या है?
बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बेका) से भारत मिसाइल हमले के लिए विशेष अमेरिकी डेटा का इस्तेमाल कर सकेगा। इसमें किसी भी क्षेत्र की सटीक भौगोलिक लोकेशन होती है।

एक्सपर्ट व्यू: बेका एग्रीमेंट के लिए यही सबसे अनुकूल समय, चीन पर साफ बात करनी होगी
पूर्व विदेश सचिव शशांक के मुताबिक, इस बार बेका पर आगे बढ़ने की संभावना है। चीन के साथ हमारे रिश्ते जिस मोड़ पर आ चुके हैं, उसमें बेका समझौता काफी अहम हो जाता है। इसलिए 2+2 वार्ता के केंद्र में बेका है। समझौता हुआ तो दोनों देश जियोस्पेशियल क्षेत्र में सहयोग बढ़ाएंगे। करगिल युद्ध के समय अमेरिका ने यह कहकर हमारे GPS बंद कर दिए थे कि यह करार शांतिकाल के लिए था। हालांकि, उसके बाद रक्षा क्षेत्र में हम दो समझौते लेमोआ और कोमकासा कर चुके हैं।

अब हमारे मंत्रियों को यह ध्यान रखना होगा कि समझौता युद्धकाल के लिए भी लागू हो। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हैं, इसलिए केवल सैद्धांतिक सहमति बनने से मामला लटक सकता है। जॉर्ज बुश के राष्ट्रपति रहते हुए भी एक बार ऐसी स्थिति बनी थी। लेकिन, तब विपक्षी पार्टियों ने कहा था कि हम चीन के साथ चलना चाहते हैं। आज बदले हालात में हमें अमेरिका को साफ कहना होगा कि ईरान के मसले पर चीन को बाहर रखना जरूरी है, वर्ना भारत बुरी तरह से घिर जाएगा। क्योंकि, चीन पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल में जड़े जमाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है।