SPECIAL: मोदी सरकार में अरबों-खरबों रुपए कमा चुकी चिनी कंपनियों की अब हुई डील कैंसिल.. BSNL के बाद रेलवे ने लिया बड़ा फैसला…

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नई दिल्ली 18 जून, 2020। लद्दाख में भारतीय सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में 20 जवानों की शहादत के बाद बीएसएनएल के अलावा अब रेलवे ने चीन को बड़ा झटका दिया है। इंडियन रेलवे के डेडिकेटेड फ्राइड कॉरिडोर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (DFCCIL) ने चीन के साथ अपना कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने का फैसला किया है। रेलवे ने चाइनीज कंपनी को कानपुर-दीन दयाल उपाध्याय सेक्शन पर 417 किलोमीटर की दूरी में सिग्नल लगाने का काम दिया गया था। इस ठेके की कीमत थी 471 करोड़ रुपए। कॉन्ट्रैक्ट को खत्म करने की घोषणा करते हुए DFCCIL ने कहा कि कंपनी ने चार साल में महज 20 पर्सेंट का काम पूरा किया है। इसलिए ये कॉन्ट्रेक रद्द करते है। केंद्र सरकार ने संचार विभाग और सरकारी टेलीकॉम कंपनियों बीएसएनएल व एमटीएनएल को निर्देश दिए हैं कि वो 4जी के क्रियान्वयन के लिए चीनी उपकरणों के इस्तेमाल पर रोक लगाएं। सरकार ने इस बारे में सभी टेंडर्स को खत्म करने के आदेश दे दिए हैं और नए टेंडर निकालने की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी।

2014 से 2020 तक आखिर क्यो मेहरबान थी मोदी सरकार

लेकिन अब आप इस बारे में भी जान लें कि केंद्र में मोदी सरकार के आने से 2014 से लेकर अबतक भारत सरकार चीन पर कितनी मेहरबान रही है। दरअसल ब्रूकिंग्स इंडिया के लिए अनंत कृष्णन की एक स्टडी के मुताबिक, जिसे लॉकडाउन के ठीक पहले प्रकाशित किया गया, 2014 तक भारत में चीन का निवेश करीब 1.6 बिलियन डॉलर था, इसी साल नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे। अगले तीन सालों में, ये निवेश पांच-गुना बढ़कर 8 बिलियन डॉलर हो गया। कृष्णन कहते हैं कि असल आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है, क्योंकि भारतीय कंपनियों में शेयर के तौर पर चीन की हिस्सेदारी और तीसरे देशों से रास्ते किए गए निवेशों का हिसाब-किताब इस आंकड़े में शामिल नहीं है।

इस स्टडी में उन मुख्य क्षेत्रों की पहचान की गई है जिसमें चीन की कंपनियां या तो पहले से निवेश कर चुकी है या अगले कुछ सालों में करने वाली है। भारत में अपना कारोबार शुरू करने वाली पहली कंपनियों में से एक हैं भारी उपकरण बनाने वाली कंपनियां सैनी और लिगांग। जहां साल 2010 से सैनी का एक प्लांट महाराष्ट्र के चाकन में काम कर रहा है, लिगॉन्ग ने मध्य प्रदेश के पीतमपुरा में एक फैक्ट्री लगाई है।

चीन की स्टील कंपनियों ने भारत में बड़े प्लांट्स लगाए हैं। भारत की ज्यादातर पावर कंपनियां चीन में बने ऊर्जा-उपकरणों का इस्तेमाल करती हैं, और दुनिया में उपकरणों के सबसे बड़े निर्यातकTBEA ने गुजरात में चीनी इंडस्ट्रियल पार्क तैयार किया है।

एक अनुमान के मुताबिक चीन की कंपनियां लैनी, लॉन्गी सोलर और CETC नवीकरणीय ऊर्जा यानि Renewable energy के क्षेत्र में 3.2 बिलियन डॉलर निवेश करने की ताक में हैं। वहीं ऑटो, रियल एस्टेट और दूसरे कई सेक्टर में चीनी कंपनियां पहले से ही सेंध मार चुकी है।

इसलिए चीन की कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाले कई सामान दरअसल भारत में बनाए जाते हैं। सबसे बड़ी मिसाल है भारत के मोबाइल-फोन बाजार में चीन का दबदबा, जहां 5 में से 4 सबसे बड़े ब्रांड चीनी हैं। मोबाइल फोन मार्केट का नेतृत्व करने वाली शाओमी कंपनी की भारत में 7 फैक्ट्रियां हैं, जो कि 500 मिलियन डॉलर का निवेश कर रीटेल में अपनी मौजूदगी को और बढ़ाने की योजना बना रही है। शाओमी के प्रतिद्वंदी BBK Electronics, जो कि तीन अलग ब्रांड – ऑपो, वीवो और वन प्लस – के मोबाइल फोन बेचती है, की दो फैक्ट्रियां उत्तर प्रदेश में हैं और जल्द ही वो तीसरी फैक्ट्री खोलने की योजना बना रहा है।

कैट ने सरकार से चीनी कम्पनियों को दिए गए ठेकों को तुरंत रद्द करने और भारतीय स्टार्टअप में चीनी कंपनियों द्वारा निवेश को वापस करने के नियमों को बनाने जैसे कुछ तत्काल कदम उठाने का भी आग्रह किया था

अब मौजूदा हालात को देखते हुए केंद्र सरकार आगे कौन-सा ऐसा कदम उठाएगी। जिससे चीन के कारोबार की कमर टूट सकें। हालांकि अब भी सवाल है कि एक-दो डील कैसिंल कर क्या केंद्र सरकार भारतियों को सांत्वना देना चाहती है या आगे भी चीन के खिलाफ ऐसे ही कई बड़े फैसले लेगी।