विश्लेषण: चुनावी रणभूमि में विजयी बनाने अमर बने अरूण के सारथी तो अटल बने भूपेश की नाक का सवाल..

0
54

बिलासपुर@ विशेष संवाददाता। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल चुनावी मैनेजमेंट के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। बिलासपुर से 20 साल तक लगातार विधायक रहे अमर लोकसभा चुनावों में हमेशा कुशल मैनेजर की भूमिका निभाते रहे हैं। चार बार के सांसद रह चुके पुन्नुलाल मोहिले के प्रत्येक चुनाव में अमर ही बूथ मैनेजमेंट संभालते रहे हैं। इस बार के प्रत्याशी अरूण साव का नाम घोषित होते वक्त बहुत कम लोग ही उन्हें जानते थे। राजनैतिक पंडितों ने भी अरूण साव को कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव की तुलना में अपेक्षाकृत कम चर्चित चेहरा बताया। लेकिन यही स्थिति 2014 के लोकसभा प्रत्याशी और वर्तमान सांसद लखनलाल साहू के साथ भी थी। उस वक्त भी अमर की चुनावी रणनीति काम आयी और लखनलाल साहू ने पौने दो लाख वोटों से जीत दर्ज की। हालांकि इस बार राज्य में कांग्रेस की सरकार है ऐसे में प्रशासनिक पकड़ से लेकर चुनावी प्रचार में भी भाजपा को विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है।

जहां कांग्रेस प्रत्याशी अटल के लिये सीएम भूपेश दिन रात एक किया वहीं अरुण साव के लिये अमर अग्रवाल सारथी की भूमिका निभायी। अटल श्रीवास्तव भूपेश बघेल की नाक का सवाल बन गये हैं। सब जानते हैं कि अटल सीएम के खासम-खास हैं। विधानसभा चुनाव से पहले लाठी खाने के बाद भी अटल टिकट पाने में नाकाम रहे थे हालांकि भूपेश ने केंद्रीय नेतृत्व तक अपनी नाराजगी जाहिर की थी। लेकिन इस बार अटल को लोकसभा का टिकट दिलाकर भूपेश ने अपनी ही चिंता बढ़ा ली है। क्योंकि अटल का मुकाबला अपेक्षाकृत कम पहचान वाले अरूण साव से है लेकिन बिलासपुर लोकसभा से लंबे समय से कांग्रेस मुकाबले से ही बाहर रही है। चार बार के सांसद रहे पुन्नुलाल मोहिले का चुनाव संचालन पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल के कंधे पर ही रहता था। इस बार भी चुनाव की बागडोर अमर संभाले रहे। बिलासपुर में विधानसभा का चुनाव भले ही हार गये हों लेकिन अब भी राजनीतिक विश्लेषक इस इलाके में उनके चुनावी प्रबंधन का लोहा मानते हैं। खैर अब तो 23 मई को ही पता चलेगा कि ऊंट किस करवट बैठने वाला है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here