किसी को कांटों से चोट पहुंची, किसी को फूलों ने मार डाला.. जो इस मुसीबत से बच गये थे, उन्हें उसूलों ने मार डाला.. पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय की बैक टू बैक स्टोरी..

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शंकर पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार की कलम से..

मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर को केन्द्र शासित राज्य बनाकर पुनर्गठन कर लद्दाख को अलग कर दिया वहीं धारा 370 तथा 35 ए को समाप्त कर ऐतिहासिक निर्णय लिया है तथा पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सपने को पूरा करने की बात भी की है पर यहां तक तो ठीक है पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की कश्मीर मसले पर की गई गलती को सुधारने की जो बात की जा रही है वह अति उत्साह ही कहा जा सकता है। कश्मीर भारत का अंग बना, वहां किन परिस्थितियों में धारा 370 तथा 35 ए लगाने की जरूरत महसूस की गई वह अलग बात है। सपने पूरा करने की बात तक तो ठीक है पर किसी की तत्कालीन कार्यवाही को गलत ठहराना उचित नहीं है वैसे भी ‘नेहरू जी’ भाजपा के हमेशा निशाने पर रहते हैं…।

कश्मीर की मौजूदा समस्या के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू ही जिम्मेदार हैं…। इस आरोप को समझने के लिए आजादी के समय चलना होगा। जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा इस आधार पर हुआ था कि हिंदू बाहुल्य इलाके भारत में रहेंगे और मुस्लिम बाहुल्य इलाके पाकिस्तान में चले जाएंगे तो मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर आखिर किस तरह भारत में आया होगा। उस समय जबरिया किसी राज्य पर कब्जे का सवाल ही नहीं था क्योंकि विभाजन की भूमिका अंग्रेजी राज में ही तय हो रही थी। तो मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर किस सिद्धांत के तहत भारत में आया, क्या वह इसलिए आया कि वहां के हिन्दू राजा हरिसिंह भारत में आना चाहते थे? जबकि उसी समय जूनागढ़ और हैदराबाद के मुस्लिम शासकों की पाकिस्तान में शामिल होने की इच्छा को खारिज कर दिया गया था।

हैदराबाद और जूनागढ़ के शासकों की मांग इस आधार पर खारिज कर दी गई थी कि वहां की बहुसंख्यक हिंदू आबादी भारत के साथ रहना चाहती है। ऐसे में राजा की जगह प्रजा के विचार को अधिक महत्व दिया जाना था।

दूसरी तरफ बंगाल और पंजाब जैसे सीमावर्ती राज्य थे। इन राज्यों को हिंदू और मुस्लिम आबादी के वजन के हिसाब से दो -दो हिस्सों में बांट दिया गया। मुस्लिम बाहुल्य इलाका पाकिस्तान बना और हिंदू बाहुल्य हिस्सा भारत में शामिल हो गया। तो क्या यह बात कश्मीर में नहीं हो सकती थी। कश्मीर भी दोनों देशों के बीच था। यहां यह भी हो सकता थाकि हिन्दू बाहुल्य जम्मू और बौद्ध बाहुल्य लद्दाख भारत में आ जाता और कश्मीर का इलाका मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण पाकिस्तान में चला जाता….। लेकिन विभाजन के समय अपनाए गये ये दोनों नियम जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं हुए, न तो वह पूरा ही पाकिस्तान में गया और न ही उसका मुस्लिम बाहुल्य हिस्सा… और यह सब तब हुआ जब कश्मीर का भारतीय भू-भाग से सड़क और रेल संपर्क नहीं के बराबर था जबकि पाकिस्तानी भूभाग से संपर्क कहीं बेहतर था। इसके बावजूद पूरा कश्मीर भारत में आया, यह बात अलग है कि बाद में पाकिस्तान ने कबायली हमला किया और जबरन कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा जमा लिया, जिसे भारत आज तक मान्यता नहीं देता है। लेकिन जम्मू-कश्मीर का मुख्य हिस्सा खासकर कश्मीर घाटी भारत में बनी रही यह कड़वी भूमिका रखने का मतलब यही है सारी विपरीत परिस्थितियों के बाद भी कश्मीर भारत में ऐसे ही नहीं आ गया, इसे भारत में शामिल करने के लिए लंबी कूटनीतिक लड़ाई लडऩी पड़ी। इस कूटनीतिक लड़ाई के चाणक्य थे… पंडित जवाहर लाल नेहरू, जिन्होंने कश्मीर की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी के नेतृत्व को पाकिस्तान की बजाय भारत के साथ खड़ा करके दिखाया। इसलिए जब कबायली हमले के समय राजा हरिसिंह ने भारतीय संघ में विलय का समझौता किया तब कश्मीर की जनता को उस समय के लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्ला ने भी भारत में विलय स्वीकार किया था। वे कश्मीर के पहले प्रधानमंत्री बने।

7 दिसंबर 1952 को संसद में दिये एक भाषण में पंडित नेहरू ने कहा था… ‘मुझे इस संदर्भ में कश्मीरी कहा जाता है कि दस पीढ़ी पहले मेरे पुरखे कश्मीर से उतरकर भारत आ गये थे लेकिन यह वह बंधन नहीं है जिसके कारण मेरे दिमाग में आता है।’ हम फिर 1947 के दौर में चलते हैं कश्मीर एक ऐसा राज्य था, उस समय उसकी सीमा सोवियत संघ, चीन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा भारत जैसे पांच देशों  को छूती थी, इसके अलावा सिक्यांग और तिब्बत से गुजरने वाली 900 मील की सीमा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परिभाषित नहीं थी। यह रूस और चीन ले हिमालय और पामीर पर्दे से ढका था। कश्मीर कितना महत्वपूर्ण था इसे दिसंबर 1955 में भारत यात्रा पर आये सोवियत संघ के राष्ट्रपति खुश्चेव की इस बात से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा था कि आप पहाड़ी की चोटी पर चढ़ जाएं तो आवाज लगाकर हमें बुला सकते हैं। दरअसल नेहरू के लिए कश्मीर सिर्फ भारत-पाक के बीच का मामला नहीं था उन्होंने 2 नवंबर 1947 को राष्ट्र के नाम संदेश में कहा भी था कश्मीर एक ऐसा भू-भाग है जिसकी सीमाएं बड़े देशों को छूती है इसलिए वहां की गतिविधियों में हमें दिलचस्पी दिखानी होगी। कहा तो यह भी जाता है कि युनान का सिकंदर भी कश्मीर के रास्ते भारत आया था वह काबुल नदी और उसके बाद सिंध नदी को पारकर तक्षशिला में घुसा था यह बात 325 ईसा पूर्व की है। इन ऐतिहासिक और भौगोलिक सच्चाइयों को नेहरू बहुत पहले के समझ रहे थे। वे जानते थे कि कश्मीर भारत में नहीं रहा और पाकिस्तान में चला गया या आजाद हो गया तो दुनिया की शक्तियां कश्मीर के बहाने भारत की सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय खतरा बन जाएंगी इस तरह भारत के असली चाणक्य नेहरू ने हर हाल में पाकिस्तान के साथ जाते दिख रहे कश्मीर को अपनी कूटनीति और राजनीति से भारत का अभिन्न अंग बना दिया। तत्कालीन परिस्थितियों के कारण वहां धारा 370 और 35 ए लगाने की बाध्यता रही होगी। तभी लगाई गई होगी। यह ठीक है कि उसे हटाने का प्रयास मोदी सरकार ने किया पर इसे नेहरू की गलती को सुधारने की बात करना बेमानी है।

कश्मीर मसला और बीबीआर की महत्वपूर्ण भूमिका…

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त कर केंद्र शासित राज्य घोषित करवाकर भारत का अभिन्न अंग बनाने के महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे छत्तीसगढ़ काडर के 87 बैच के आईएएस तथा अविभाजित जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बीबीआर सुब्रमणयम की प्रमुख भूमिका से कोई इंकार नहीं कर सकता है। ड्राफ्ट तैयार करने की टीम का नेतृत्व भी वही कर रहे थे। ज्ञात रहे कि छत्तीसगढ़ में एसीएस गृह की जिम्मेदारी सम्हालने वाले सुब्रमणयम को मोदी की केंद्र सरकार ने सीधे जम्मू-कश्मीर का मुख्य सचिव बनाकर उन्हें महत्वपूर्ण दायित्व दिया था। 55 वर्षीय अफसर को जम्मू-कश्मीर जैसे समस्याग्रस्त, अशांत राज्य का मुख्य सचिव बनाना चुनौतीपूर्ण कार्य था पर सुब्रमणयम ने अपने कत्र्तव्य को बखूबी अंजाम भी दिया। मोदी सरकार के ऐतिहासिक जम्मू-कश्मीर फैसले के बाद वे पुन: सुर्खियों में हैं। छत्तीसगढ़ में बतौर गृहमंत्रालय की बागडोर सम्हालने के बाद बस्तर में 700 किलोमीटर की पक्की सड़कों का निर्माण, 2017 में 300 नक्सलियों के मारे जाने सहित करीब 1000 नक्सलियों के आत्मसमर्पण के पीछे सुब्रमणयम तथा राज्यपाल के सलाहकार आईपीएस विजय कुमार की बड़ी भूमिका रही तो तत्कालीन नक्सली मामलों के  विशेष पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी का भी महत्वपूर्ण रोल रहा था।

छत्तीसगढ़ आने के पहले बीबीआर सुब्रमणयम 2004 से 2008 तक पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निजी सचिव रहे, 2008 से 2011 तक वल्र्ड बैंक के साथ काम साझा किया, मार्च 12 से पुन: डॉ. मनमोहन सिंह के सरकार में सेवाएं दी 2014 में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद मार्च 15 तक पीएमओ में कार्यरत रहे। उसके बाद मूल काडर में छत्तीसगढ़ लौट आए थे। यहां प्रमुख सचिव अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में सेवाएं दी बाद में उन्हें अंतर्राज्यीय प्रतिनियुक्ति के तौर पर जम्मू-कश्मीर का मुख्य सचिव बनाया गया था। बीबीआर की पत्नी उमादेवी आईएफएस हैं तथा छग में व्यापम की चेयरमेन हैं। जाहिर है कि बीबीआर सुब्रमणियम, आरपी मंडल तथा सी.के. खेतान एक ही बैच के आईएएस हैं तथा वेटिंग सीएस (मुख्य सचिव) हैं। अब बीबीआर की छग वापसी उनकी इच्छा पर ही निर्भर करेगी क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी उन्हें मुक्त करने वाले हैं नहीं पर सूत्र कहते हैं कि भले ही छत्तीसगढ़ में उन्होंने बहुत अधिक समय नहीं गुजारा है पर उन्हें छत्तीसगढ़ भा गया है। यदि उनकी छग वापसी होती है तो अगले मुख्य सचिव वहीं बनेंगे यह तय माना जा रहा है।

और अब बस…

  • आदिवासी दिवस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का यह बयान कि अब छत्तीसगढ़ में फर्जी जाति प्रमाण पत्र से न कोई नौकरी कर पायेगा न राजनीति….उनका इशारा पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की तरफ है। यह लगभग तय है जल्द ही सरकार कोई बड़ा निर्णय ले सकती है।
  • छत्तीसगढ़ में पत्रकार सम्मान निधि 10 हजार रु. प्रतिमाह करने, तहसील, ब्लाक स्तर पर पत्रकारों को अधिमान्यता देने के फैसले के बाद अपनी विज्ञापन नीति राज्य बनने के 19 साल बाद घोषित करने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, जनसंपर्क संचालक,सह आयुक्त तारण सिन्हा बधाई के पात्र तो हैं ही….।
  • हरेली, आदिवासी दिवस तथा तीजा पर अवकाश देकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने साबित कर दिया कि वे ही मूल छत्तीसगढिय़ा मुख्यमंत्री है।
  • छत्तीसगढ़ के गृह परिवहन, पर्यटन मंत्री ताम्रध्वज साहू का जन्मदिन सादा-सादा मना नहीं तो पूर्ववर्ती सरकार के मंत्री भी धूमधाम से जन्मदिन मनाते थे।

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