जानिये GDP में गिरावट का आम लोगों की जिंदगी पर किस तरह होगा असर..

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01 सितंबर 2019, नई दिल्ली। अर्थव्यवस्था में सुस्ती का असर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर दिख रहा है। शुक्रवार को वित्त वर्ष की पहली तिमाही के आंकड़ों के मुताबिक भारत विकास दर पांच फीसदी पर आ गई है। जो छह सालों का सबसे निचला स्तर है। जीडीपी में गिरावट को लेकर आर्थिक मामलों के जानकार इस पर चिंता जाहिर कर रहे हैं। जीडीपी घटने का असर ना सिर्फ बड़े उद्योगों पर होता है बल्कि आम लोग भी इससे प्रभावित होते हैं।

हम सब पर कैसे असर डालती है जीडीपी?

जीडीपी का अर्थ आर्थिक उत्पादन और विकास से है। देश की अर्थव्यवस्था से संबंधित हर व्यक्ति पर यह प्रभाव डालता है। जीडीपी बढ़ने-घटने की स्थिति में शेयर बाजार पर असर पड़ता है। नकारात्मक जीडीपी निवेशकों के लिए चिंता का विषय बन जाती है। नकारात्मक जीडीपी देश के आर्थिक मंदी के दौर से गुजरने का संकेत है। ऐसे समय में जब देश में उत्पादन घटता है तो बेरोजगारी बढ़ जाती है। इस वजह से हर व्यक्ति का कामकाज, आमदनी, खर्च-निवेश करने की क्षमता और देश की अर्थव्यवस्था भी इससे प्रभावित होती है।

उत्पादन घटेगा, बेरोजगारी बढ़ेगी, निवेश में कमी आएगी

जीडीपी घटने का अर्थ है औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आ रही है। यदि बाजार में औद्योगिक उत्पादन कम होता है तो कई सेवाएं भी प्रभावित होती है। इसमें माल ढुलाई, बीमा, गोदाम, वितरण जैसी तमाम सेवाएं शामिल हैं। इससे बेरोजगारी बढ़ जाती है। बिक्री ठप पड़ जाती है तो कंपनियां कर्मचारियों की छंटनी करने लगती हैं। साथ ही बचत और निवेश में कमी आती है। लोगों के पास जो पैसा बचेगा वह बचत के लिए इस्तेमाल होगा, जब नौकरियां जाएंगी तो कहां से बचत होगी।

क्या है जीडीपी, कैसे मापा जाती है

एक निश्चित अवधि में किसी देश में उत्पादित, आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त अंतिम माल और सेवाओं का बाजार मूल्य ही सकल घरेलू उत्पाद है। यह एक आर्थिक संकेतक है जो देश के कुल उत्पादन को मापता है।प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद सामान्यतया किसी देश के जीवन-स्तर और अर्थव्यवस्था की समृद्धि सूचक माना जाता है। भारत में जीडीपी के तीन घटक, कृषि, उद्योग और सेवा हैं। इन क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ने-घटने की औसत के आधार पर जीडीपी दर तय होती है।