छत्तीसगढ़ संगीत के भीष्मपितामह खुमान साव का निधन…आज होगा अंतिम संस्कार, चंदैनी-गोंदा के आत्मा थे, पढ़िए एक टीचर से संगीतकार बने खुमान की कहानी…

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9 जून 2019 भिलाई। छत्तीसगढ़ के लोक कला को जिंदा रखने वाले और छत्तीसगढ़ के संगीत के भीष्मपितामह कहे जाने वाले खुमान साव का निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार रविवार को ही गृहग्राम राजनांदगांव के पास सोमनी समीपस्थ ठेकवा में किया जाएगा। उनके निधन की खबर से साहित्यि क्षेत्र में शोक की लहर है।
छत्तीसगढ़ की समृद्धशाली लोक सांस्कृतिक परंपरा में रचे बसे गीतों और विलुप्त होती लोक धुनों को परिमार्जित कर तथा आधुनिक कवियों की छत्तीसगढ़ी रचनाओं को स्वरबद्ध कर उसे लोकप्रियता की दृष्टि से फिल्मी गीतों के समकक्ष खड़ा देने वाले खुमान साव ही थे। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित स्वनाम धन्य लोक संगीतकार खुमान लाल साव सही अर्थों में छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक दूत है। जिन्होंने अपनी विलक्षण संगीत साधना और पांच हजार मंचीय प्रस्तुतियों के माध्यम से छत्तीसगढ़ महतारी का यश चहुंओर फैलाया है। एक इंटरव्यू के मुताबिक…लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत एवं सुगम संगीत के साधक साव का जन्म 5 सिंतबर 1929 को डोंगरगांव के समीप खुर्सीटिकुल नामक गांव में एक संपन्न माल गुजार परिवार में हुआ।

  • बचपन से संगीत के प्रति रूचि रखने वाले श्री साव ने योग्य गुरूओं के संरक्षण में संगीत की बारीकियों को समझा।
  • 14 वर्ष की कच्ची उम्र में उन्होंने नाचा के युग पुरूष मंदराजी दाऊ की रवेली नाचा पार्टी में शामिल होकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।
  • विभिन्न नाचा पार्टियों में अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए श्री साव ने बाद में राजनांदगांव में आर्केस्ट्रा की शुरूआत की।
  • खुमान एंड पार्टी, सरस्वती संगीत समिति, शारदा संगीत समिति और सरस संगीत समिति का संचालन करते हुए उन्होंने अंत में राज भारती संगीत समिति तक का सफर तय किया, लेकिन आर्केस्ट्रा पार्टियों में फिल्मी गीत संगीत के अनुशरण से वे कतई संतुष्ट नहीं थे।
  • उनके भीतर का संगीतकार उन्हें बार बार मौलिक संगीत रचना के लिए प्रेरित कर रहा था।
  • सन 1970 में उनकी मुलाकात लोक कला मर्मज्ञ बघेरा निवासी दाऊ रामचंद देखमुख से हुई जो छत्तीसगढ़ की प्रथम लोक सांस्कृतिक संस्था ‘चंदैनी गोंदा’ के निर्माण की योजना बनाकर योग्य कलाकारों की तलाश में घूम रहे थे।
  • उन्हें एक ऐसे संगीत निर्देशक की तलाश थी, जो छत्तीसगढ़ी आंचलिक गीतों में नया प्राण फूंक सके।
  • श्री साव स्वयं अपनी मौलिक संगीत रचना की प्रस्तुति के लिए बेचैन थे। श्री देशमुख के आग्रह को स्वीकार कर श्री साव ‘चंदैनी गोंदा’ में संगीत निर्देशक के रूप में शामिल हुए। – संगीतकार श्री साव और गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया ने दिन-रात मेहनत कर ‘चंदैनी गोंदा’ के रूप में श्री देशमुख के सपने को साकार किया।
  • 7 नवंबर 1970 से दुर्ग जिले के बघेरा से जारी ‘चंदैनी गोंदा’ की अविराम यात्रा 45 वर्षों बाद भी जारी है और श्री साव आज भी ‘चंदैनी गोंदा’ रूपी रथ के सारथी बने हुए थे।
  • (जैसा कि राजनांदगांव निवासी बीरेंद्र बहादुर सिंह ने रचनाकर ब्लॉग में लिखा)
कुछ दिन पहले ही खुमान साव जी ने मंदराजी फिल्म का ट्रेलर रिलीज किया था। निधन के बाद मंदराजी फिल्म के कास्ट ने उन्हें श्रद्धांजलि दी…

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