ज्योतिरादित्य सिंधिया की पत्नी ने सेल्फी लेने के नाम पर जिसका मजाक उड़ाया था.. उन्होंने सिंधिया को सवा लाख वोटों से हराया.. पढ़िए दिलचस्प स्टोरी..

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गुना 24 मई, 2019। लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम आ गए हैं जिसमें पूरे देश में मोदी सुनामी में एनडीए को बड़ी जीत मिली है। यही स्थिति मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने वो शिकस्त देखी जैसी दशकों में नहीं मिली थी। भाजपा ने न सिर्फ अपनी पिछली सभी 27 सीटें जीतीं, बल्कि गुना को भी ज्योतिरादित्य सिंधिया से झटक लिया। गुना में भाजपा कैंडीडेट 1 लाख 23 हज़ार वोट से जीते हैं नाम के पी यादव।

एक तस्वीर और सिंधिया की हार का किस्सा

ज्योतिरादित्य सिंधिया उत्तर प्रदेश (पश्चिम) के प्रभारी बनाए गए थे। तो काफी वक्त यूपी में रहे। उनका प्रचार संभाला उनकी पत्नी प्रियदर्शनी राजे सिंधिया ने। ज्योतिरादित्य को टिकट मिलेगा, ये प्रश्न कभी था ही नहीं। जब भाजपा की तरफ से टिकट आया तो उसपर नाम था कृष्ण पाल सिंह उर्फ डॉ के.पी. यादव का। वही के पी यादव जो कभी सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि होते थे और सालभर पहले ही भाजपा में आए थे। केपी यादव की सिंधिया के साथ खूब सारी तस्वीरें हैं। इन्हीं में से एक

प्रियदर्शिनी ने अपनी फेसबुक वॉल पर शेयर की –

के पी यादव कभी सचमुच सेल्फी लेने के लिए दौड़ लगाते थे। लेकिन ये तब की बात थी। अब समय बड़े कायदे से बदला है।
के पी यादव कभी सचमुच सेल्फी लेने के लिए दौड़ लगाते थे। लेकिन ये तब की बात थी। अब समय बड़े कायदे से बदला है।

तस्वीर में गाड़ी के अंदर बैठे हुए हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया। गाड़ी के बाहर से सेल्फी ले रहे हैं केपी यादव। गुना में इंडिया टुडे से जुड़े पत्रकार विकास दीक्षित बताते हैं कि तस्वीर के साथ प्रियदर्शिनी ने जो लिखा उसका सार यही था कि जो कभी महाराज के साथ सेल्फी लेने की लाइन में रहते थे, उन्हें भाजपा ने अपना प्रत्याशी चुना है। ये एक आत्ममुग्ध पोस्ट था। ज्योतिरादित्य की दादी राजमाता सिंधिया गुना से जीती हैं। ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया गुना से जीते हैं। चार बार ज्योतिरादित्य भी यहां से चुने गए हैं। शायद यही वजह है कि प्रियदर्शिनी ने ये पोस्ट करने से पहले दो बार नहीं सोचा।

लेकिन सिंधिया यूपी के दौरे पर रहे और जब आखिरी हफ्ते में लौटे तो बहुत देर हो चुकी थी। गांव में मोदी लहर का असर रहा और केपी यादव उसी शख्स को हराकर सांसद बन गए जिनके वो सांसद प्रतिनिधी थे। प्रियदर्शिनी की पोस्ट के साथ शिवराज का एक बयान भी याद आता है। एक सभा में उन्होंने केपी यादव को विभीषण बातकर कहा था कि अब भाजपा लंका फतह कर लेगी। लोक में विभीषण की उपमा तारीफ में कम ली जाती है। केपी यादव ने एक अकल्पनीय जीत दर्ज की है। और इसी के साथ वो विभीषण के टैग से बड़े हो जाते हैं।

पहले सेल्फी लेते थे, अब मूंछों को ताव देते हैं

न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के मुताबिक के पी यादव का परिवार लंबे समय से राजनीति में है। उनके पिता रघुवीर सिंह यादव चार बार गुना ज़िला पंचायत अध्यक्ष रहे थे। 2004 से केपी सक्रिय राजनीति में आए। सिंधिया के खास हुए, सांसद प्रतिनिधि भी बने। अब विधायक बनने की बारी थी। महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा के निधन के बाद मुंगावली से उपचुनाव की बारी आई।

केपी यादव टिकट के दावेदार थे और इलाके में पहले से सक्रिय थे। क्योंकि वो मानकर चल रहे थे कि टिकट उन्हें ही मिलेगा। लेकिन टिकट चला गया बृजेन्द्र सिंह यादव को। केपी यादव ने नाराज़ होकर अपने पिता की पार्टी छोड़ दी। बृजेन्द्र सिंह यादव उपचुनाव जीत गए और 2018 के विधानसभा चुनाव के लिए मुंगावली से कांग्रेस प्रत्याशी भी बने। भाजपा ने केपी यादव को हिसाब बराबर करने का मौका दिया – मुंगावली से प्रत्याशी बनाकर। लेकिन इस सीट पर कांग्रेस परंपरागत रूप से मज़बूत रही है और यादव फिर करीबी अंतर से हार गए।

इसके बाद आए लोकसभा चुनाव 2019। भाजपा ने कलेजा थामकर पेशे से एमबीबीएस डॉक्टर केपी यादव को एक मौका और दिया। इस बार पुराने बॉस ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ। सबने कहा एक हारा हुआ विधायक चार बार के सांसद और सिंधिया घराने के वारिस को कैसे हरा देगा। लेकिन जब नतीजे आए, तो वो हुआ जो खुद केपी यादव ने भी नहीं सोचा होगा।

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