क्या कोरोना की लड़ाई तृतीय विश्व युद्ध का रुप ले ली है…!

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आज कोरोना के खिलाफ लड़ाई तृतीय विश्व युद्ध का रूप ले ली है, दुश्मन अदृश्य है और सम्पूर्ण मानव सभ्यता को चुनौती दे रहा कि तुम जितने भी महान क्यो न बन जाओ.. तुम्हरा अस्तित्व कभी भी समाप्त हो सकता है। मानव की  विवेक बुद्धि और विकास को सीधे चुनौती ही नहीं है.. बल्कि ये खड़ा होकर बार-बार प्रश्न कर रहा कि क्या अब मानव सभ्यता का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा।

आज हम सब के मन मस्तिष्क में बस एक ही प्रश्न बार-बार घूम रहा कि लॉक डाउन आगे बढ़ाया जायेगा या समाप्त कर दिया जायेगा? यदि समाप्त किया गया तो क्या ये संकुचित दायरे में प्रतिबंध के साथ होगा? क्योकि अब बन्द की मार मानव जीवन को प्रभावित ही नहीं कर रही बल्कि यह प्रश्न भी खड़ा कर रही दो वक्त की रोटी की।

आज गली मोहल्ले में छोटे-छोटे लोकप्रिय गोलगप्पे लगाने वालों को अपना भविष्य अंधकार मय लग रहा, छोटे-छोटे समोसा, भाजी, फल, चाय, पान ठेला, फुग्गे वाले, पॉप कॉर्न वालों को अपनी दो वक्त की रोटी की समस्या झकझोर कर रख दे रही। उनकी रातों की नींद गायब हो गई है।

आज मझोले व्यवसायी जो लोन ले कर कपड़े दुकान, डेली नीड, आइसक्रीम, ऑटो पार्ट की दुकानें  आदि खोल कर बैठे थे और हर माह EMI से अपना लोन चुकता कर रहे थे उनको अपना भविष्य में अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा, गांव में दिन रात मेहनत कर के फल, सब्जी, आदि की फसल लेने वाले किसानों से कोई फसल अच्छी कीमत लेने को तैयार नहीं, छात्र-छात्राओं को घर बैठे क्लास जरूर ली जा रही पर वे बार-बार सोचने पर मजबूर है कि आखिर कब तक ये चलेगा।

जिन व्यक्तियों की गाड़ी या AC या अन्य बिजली का सामान खराब हो गया उनको बनाने वाला कोई नहीं, मिस्त्री ना चाहते हुए भी घर में खाली बैठने को विवश हो गए है। घर की गृहणी परेशान हो गई है। सीमित सामग्री के साथ घर चलाने में, बाजारों में मजदुरों का झुंड जो रोज कही भी जा कर मजदूरी करने के लिए खड़ा रहता था। आज भी घर में इंतजार कर रहा कि कब स्थिति सामान्य होगी और वो अपने बच्चों के लिए आवश्यक सामग्री ले कर आ जायेगा। सम्पूर्ण मानव जीवन रुक गया है, बल्कि मानव सभ्यता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा रहा, हर वर्ग को फिक्र है तो अपनी दो वक्त की रोटी की।

सरकार कल या परसो में बन्द के विषय में निर्णय लेगी किंतु ये निर्णय को लेने के पहले समाज के हर वर्ग की स्थिति को सोच कर निर्णय लेना होगा, हर वर्ग की जमीनी असलियत को समझ कर निर्णय लेना होगा। भारत सरकार द्वारा अमिरिका के सामने बस ट्रम्प की एक घुड़की के आगे घुटने टेक दिए और दवाई की आपूर्ति प्रारंभ कर दी, सभी को याद होगा कि जब इराक के विरुद्ध संयुक्त विश्व सेना जब आक्रमण कर रही थी उस समय देश के विरोध कारण तात्कालिक प्रधानमंत्री युवा तुर्क चंद्रशेखर जी ने अमेरिकी विमानों को आयल की आपूर्ति करने से इनकार कर दिया था। आज हमको ऐसे ही 56 इंच के सीने वाले निर्णय की आवश्यकता है, हमारा एक निर्णय देश, प्रदेश का भविष्य तय करेगा, लोगों की दो वक्त की रोटी का निर्णय करेगा, निर्णय लेना बहुत कठिन होगा क्योकि एक गलत निर्णय इतिहास में लिखा जायगा कि

             लम्हो ने खता की

                    सदियों ने सजा पाई ..।

गुमनाम व्यक्ति द्वारा लिखी गई लेख