गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले को सेटअप करने और प्रशासनिक स्ट्रक्चर तैयार में कलेक्टर शिखा राजपूत तिवारी की रही अहम भूमिका…

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रायपुर। नए जिले गौरेला, पेंड्रा एवं मरवाही के बनने के बाद आईएएस शिखा राजपूत तिवारी को OSD नियुक्त किया गया और 10 फरवरी 2020 को नया जिला जीपीएस के अस्तित्व में आने के पहली कलेक्टर की जिम्मेदारी सौंपी गई। जाहिर सी बात थी सीनियर कलेक्टर होने के कारण उन्हें इसलिए भी यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई। ताकि नए जिले के सेटअप में किसी तरह की कोई परेशानी ना हो। और हुआ भी ऐसा ही।

गौरेला पेंड्रा एवं मरवाही जिले में सबसे बड़ा काम कलेक्टोरेट का सेटअप करना था। जिसे GPM की ओएसडी रहीं शिखा राजपूत तिवारी ने बखूबी पूरी टीम तैयार कर ली। जिसमें सरकार ने उन्हें कलेक्टर की जिम्मेदारी सौंपी। इसके साथ ही सरकार ने एक अपर कलेक्टर, एक संयुक्त कलेक्टर एवं तीन डिप्टी कलेक्टर समेत लगभग 63 अधिकारियों, कर्मचारियों का अमला तैयार किया।

प्रशासनिक सेटअप के लिए गौरेला में पर्याप्त व सर्वसुविधायुक्त भवनें है। गौरेला तीन तरफ से सडक़ मार्ग से जुड़ा हुआ है। इसलिए संसाधनों के मामले में गौरेला में शासकीय भवनों की अधिक संख्या में है। इसलिए इसका मुख्यालय प्रशासनिक तौर पर गौरेला ही बनाया गया।

3 माह का कार्यकाल में सभी विभागों का सुचारू रूप से संचालन

आईएएस शिखा राजपूत तिवारी के महज 3 माह के कार्यकाल में जिला कोषालय और जिला चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी का कार्यालय जिले को प्राप्त हुआ। इसके साथ ही कई विभागों के जिला कार्यालयों को गौरेला में संचालन का कार्य किया गया। नए जिले के बनने के बाद आने वाली परेशानी को सब जानते हैं इस बीच कलेक्टर ने सभी विभाग को सुचारू रूप से संचालन का कार्य भी किया।

कम संसाधनों में बहुत जल्दी ही जिले का स्ट्रक्चर तैयार कर उसे सेटअप कराना और जिले को सवारना एक बड़ी जिम्मेदारी थी जिसे कलेक्टर शिखा राजपूत तिवारी ने बखूबी निभाया।

सीमित संसाधनों के बीच कोरोना से जंग

गौरेला पेंड्रा मरवाही जिला बनने के बाद कोरोना की इस लड़ाई में जिला प्रशासन की अहम भूमिका रही। बिलासपुर जिला मुख्यालय से मरवाही के अंतिम छोर की दूरी 165 किलोमीटर है। जहां तक राज्य सरकार के नियमों को इस समय कड़ाई से पालन कराना मुश्किल होता लेकिन जिला बनने के बाद कलेक्टर और उनकी पूरी टीम ने मुस्तैदी के साथ दिन रात एक कर न सिर्फ कोरोना संक्रमण फैलने से रोकने में मदद की। बल्कि मध्य प्रदेश की सीमा पर कड़ाई से पालन कराकर काफी हद तक मध्य प्रदेश के लोगों को छत्तीसगढ़ आने जाने पर रोक लगाई।

कोरोना संकट में मनरेगा से मिला रोजगार

गौरेला पेंड्रा एवं मरवाही जिले में 80% से ज्यादा जॉब कार्ड को मनरेगा के माध्यम से रोजगार दिया गया। जाहिर है इस कार्य के लिए कलेक्टर की भूमिका अहम रही उनकी कड़ाई से पालन कराने और अधिकारियों को समय पर निर्देशित करने से यह संभव हो पाया।

गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिले की 131 ग्राम पंचायतों में 672 कार्य चल रहे हैं। इनमें 11,884 मजदूर कार्यरत हैं। गौरेला जनपद पंचायत के 41 ग्राम पंचायतों में 156 कार्य, पेंड्रा के 30 ग्राम पंचायतों में 185 और मरवाही के 60 ग्राम पंचायतों में 331 कार्य संचालित हैं। बिल्हा जनपद पंचायत के 3154, पेंड्रा के 3812 एवं मरवाही के 4918 श्रमिकों को इन दिनों विभिन्न मनरेगा कार्यों से रोजगार मिला हुआ है। प्रदेश का आठवां ऐसा जिला जहां मनरेगा में सबसे ज्यादा रोजगार दिया गया।

आदिवासी अंचल में मिला लोगों को प्रशासन की मिल रही मदद

गौरेला पेंड्रा मरवाही जिला दूरस्थ वनांचल में स्थित है। जिला मुख्यालय बिलासपुर से मरवाही तहसील के अंतिम छोर की दूरी लगभग 165 किलोमीटर है। जनसामान्य को शासकीय कार्य के लिए जिला मुख्यालय बिलासपुर आने जाने में अत्यधिक समय व संसाधन लगता है। जिला पूर्णता अधिसूचित क्षेत्र में है। अत: आदिवासी बहुल एवं विशेष पिछड़ी जनजाति तथा बैगा जनजाति के हितों के संवर्धन एवं विकास में मदद मिल रही है। कलेक्टर रहते हुए शिखा राजपूत तिवारी भी लगातार आदिवासियों से मिलती रही और उनकी समस्या का हल ढूंढने का प्रयास करती रहीं। कोरोना के इस भीषण काल में भी उन्होंने जरूरतमंदों को प्रशासन की तरफ से जरूरत की सामग्री उपलब्ध कराएं इसकी भी चर्चा आज भी गौरेला पेंड्रा मरवाही के आदिवासी महिलाएं करती हैं।