अमर अग्रवाल की तैयारी शुरू, इधर कांग्रेस से अबतक प्रत्याशी ही तय नहीं, अमर से मुकाबले के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा कांग्रेस को..

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सीजी मेट्रो डॉट कॉम/मनोज कुमार साहू

बिलासपुर। भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबले में बिलासपुर सीट कोई भी जीते, एक इतिहास जरूर बन जाएगा। बिलासपुर से पांचवी बार विधायक कोई भी नहीं बना, न ही छत्तीसगढ़ बनने के बाद इस सीट से कांग्रेस का कोई विधायक रहा। कभी कांग्रेस का गढ़ रहे इस सीट से भाजपा के अमर अग्रवाल चार बार चुनाव जीत चुके हैं और पांचवी पारी की तैयारी में हैं। इधर, कांग्रेस ने अबतक अपने प्रत्याशी तय नहीं कर पाए है। ऐसे में भाजपा प्रत्याशी अमर अग्रवाल के खिलाफ कांग्रेस से कौन खड़ा होगा। ये कोतुहल का विषय बना हुआ है।

बिलासपुर विधानसभा से भाजपा के अमर अग्रवाल लगातार चार बार चुनाव जीतते आ रहे हैं। उन्होंने सबसे पहले 1998 में जीत दर्ज की थी। 2018 में अमर अपनी पांचवी पारी की तैयारी में हैं। अगर इस चुनाव में जनता उन्हें चुनती है तो वे इस सीट से लगातार चौथी और अबतक पांचवी जीत का रिकार्ड बनाएंगे। अगर कांग्रेस को यह सीट वापस मिलती है तो छत्तीसगढ़ बनने के बाद हुए निर्वाचन में इस विधानसभा सीट से जीत दर्ज कर इतिहास रचेंगी।

लेकिन अब कांग्रेस से कोई प्रत्याशी डिक्लेयर नहीं होने से कांग्रेस नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। महज 20 दिन मतदान को बाकी है। और पार्टी ने अबतक प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं की है। ऐसे में बिलासपुर कांग्रेस की तैयारी कीफी नजर आ रही है। वहीं बात करे भाजपा प्रत्याशी अमर अग्रवाल की तो उनकी तरफ से इतिहास रचने के लिए जोर आजमाइश जारी है। हालांकि कांग्रेस के प्रत्याशी घोषणा के बाद देखने होगा कितनी स्पीड से वे चुनावी मैदान में दौड़ पाते है। इस दिलचस्प मुकाबले में सभी को नतीजे का बेसब्री से इंतजार होगा।

अमर अग्रवाल भाजपा के कद्दावर नेता हैं, जो रमन सरकार में लगातार तीन बार मंत्री रहे हैं। वे पिछले 4 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशियों को खासे अंतर से पछाड़ते रहे हैं। दूसरी ओर जिन 48 वार्डो को मिलाकर विधानसभा बनी है, उनसे अधिक 55 वार्ड से चुनकर कांग्रेस वाणी राव मेयर की सीट पर पहुंची थी। जिसके बाद भाजपा ने पिकअप करते हुए इऩ सभी से मेयर किशोर राय ने जीत दर्ज की थी। बता किशोर राय अमर अग्रवाल के बेहद करीबी माने जाते है। और किशोर राय को जिताने का पूरा श्रेय अमर अग्रवाल को जाता है।

जीत के वोटों का मैनेजमेंट

चुनाव जीतने के लिए दोनों दलों के पास अपने-अपने तर्क और मुद्दे हैं। इन्हीं के साथ वे मतदाताओं के बीच जा रहे हैं। आयोग की सख्ती से चुनाव का माहौल काफी बदला हुआ है। गली-मोहल्लों में अधिक बेनर-पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं। वार्डो में चुनाव कार्यालय और शोर-शराबा भी इतना ज्यादा नहीं है। इन परिस्थितियों में भाजपा लोगों के बीच जाकर जनसंपर्क करने में लगी है। अमर अग्रवाल के साथ उनके बेटे आदित्य समेत पूरे भाजपा के पदाधिकारी पूरी ताकत झोंक दिये है। वहीं कांग्रेस की तरफ से अभी किसी के नाम की अधिकारिक घोषणा नहीं होने की वजह से काफी हताशा देखी जा रही है। हालांकि दोनों दलों के परंपरागत वोट पक्के हैं, बशर्ते ऐसे सभी वोटर मतदान केंद्र तक पहुंचें।

इसके बाद सारा मैनेजमेंट उन वोटों के लिए चल रहा है, जिनसे बढ़त-घटत होनी है। प्रत्याशी अपनी ताकत बुद्धिजीवी वर्ग का समर्थन हासिल करने में लगा रहे हैं जो किसी दल विशेष के नहीं हैं। स्लम एरिया में भी मेहनत जारी है, जहां के वोट थोक में इधर-उधर पड़ने की संभावना रहती है।

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