पहाड़ काटकर तीन किलोमीटर लंबी नहर बना दी, बिहार के नए माउंटेनमैन लौंगी भुइंया ने

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बिहार। माउंटेनमैन बोलते ही अकसर लोंगों की जुबान पर तुरंत ही दशरथ मांझी का नाम आ जाता है। वही जिन्होंने पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया था और दुनियां भर में चर्चित हो गए थे। समय का खेल तो दिखिये बिहार में एक शख्स ने उन्ही की तरह अकेले कठिन परिश्रम करके पहाड़ खोदकर एक नहर अपने गांव तक पहुंचा दी। उस शख्स का नाम है लौंगी भुइंया। लोंग अब उन्हें दूसरे माउंटेन मैन के नाम से बुलाने लगे हैं।

लौंगी भुइंया की कहानी

लौंगी भुइंया बिहार की राजधानी पटना से लगभग 200 किलोमीटर दूर गया ज़िले के इमामगंज और बांकेबाजर प्रखंड की सीमा पर जंगल में बसे कोठिलवा गांव के रहने वाले है। लौंगी भुइंया के चार बेटे भी काम-काज की तलाश में घर छोड़कर चले गए हैं। अपने गांव से सटे बंगेठा पहाड़ पर बकरी चराते हुए लौंगी भुइंया को एक दिन ये ख्याल आया कि अगर गांव में पानी आ जाए तो न केवल पलायन रुक सकता है बल्कि फ़सल उगाई जा सकती है।

लौंगी भुइंया ने देखा था कि बरसात के दिनों में वर्षा तो होती है मगर सारा पानी बंगेठा पहाड़ के बीच में ठहर जाता है, उन्हें बस यही से उम्मीद की रोशनी दिखाई दी। उसने पूरे इलाके में घूमकर पहाड़ पर ठहरे पानी को खेत तक ले जाने का नक्शा तैयार किया और जुट गए पहाड़ को काटकर नहर बनाने के काम में। इस काम में एक, दो, तीन दिन नहीं पूरे तीस साल के कठिन परिश्रम करने के बाद उन्होंने पहाड़ पर जमा हुवे पानी को गांव के तालाब तक पहुंचा दिया।

उन्होंने अकेले फावड़ा चलाकर तीन किलोमीटर लंबी, 5 फ़ीट चौड़ी और तीन फ़ीट गहरी नहर बना दी। इसी साल अगस्त में उनका यह काम पूरा हुआ है। अबकी बरसात में उनकी मेहनत का असर भी दिख रहा है।उनके कार्य से आसपास के तीन गांव के किसानों को इसका फ़ायदा मिल रहा है, लोगों ने इस बार धान की फ़सल भी उगाई है।

लौंगी भुइंया की उम्र अब 70 वर्ष है उनके चार बेटे हैं जिनमें से तीन बाहर रहते हैं। घर पर पत्नी, एक बेटा-बहु और बच्चे हैं, लेकिन अब उन्हें उम्मीद है कि बाक़ी बेटे भी वापस घर आएंगे। बेटों ने उनसे ऐसा वादा भी किया है।

बीबीसी ने किया था संपर्क

बीबीसी से फ़ोन पर बात करते हुए लौंगी भुइंया कहते हैं कि, “एक बार वे मन बना ले तो पीछे नहीं हटते। अपने काम से उन्हें जब-जब फुर्सत मिलती, वे नहर बनाने के लिए पहाड़ काटने के काम काम मे लग जाते थे, कई बार उनकी पत्नी कहती थी कि आपसे नहीं हो पाएगा, लेकिन मुझे हर बार लगता था कि हो जाएगा।”

लौंगी भुइंया को नही पता था दशरथ मांझी के बारे में

लौंगी भुइंया बताते हैं कि, जब उन्होंने नहर बनाने ठानी थी तब वे दशरथ मांझी के बारे में नहीं जानते थे ये उनके बारे में उन्हें जानकारी काफी बाद में मिली। उनके दिमाग़ में तो केवल इतना ही था कि पानी आ जाएगा तो खेती होने लगेगी। बाल बच्चे बाहर नहीं जाएंगे और खेती से पेट भरने जीतन अनाज कम से कम हो ही जाएगा।

गांव के लोगों में ख़ुशी की लहर

लौंगी भुइंया के पहाड़ काटकर नहर बनाने के काम से अगर कोई ‌सबसे ख़ुश है तो उनके गांव के किसान। उनके बनाए नहर का पानी अब किसानों के खेतों तक आ रहा है, अब उन्हें लगता है कि वे अब हर प्रकार की खेती कर सकते हैं।

गांव के निवासी उमेश राम बड़े गर्व से कहते हैं, “लौंगी भुइंया ने जो किया है वह किसी चमत्कार से कम नहीं क्योंकि बहुत कठिन है के एक असंभव से पहाड़ को काटकर नहर बनाना। हमारी आने वाली पीढ़ियां लौंगी भुइंया के कार्यों को हमेशा याद रखेंगी।”

कोठिलवा गांव के ही जीवन मांझी भी कहते है कि, “वे जब नहर बनाने के काम में लगे रहते थे तब हमलोगों ने उनकी मेहनत और लगन को देखकर स्थानीय प्रशासन व जनप्रतिनिधियों से मदद भी मांगी, लेकिन किसी ने भी मदद करना तो दूर, हमसे बात करने के लिए समय भी नहीं दिया था। हमलोगों ने भी कई बार लौंगी को टोका कि यह असंभव काम है पर वे हमारी बातों को अनसुना कर के आने काम मे लगे रहते थे। आज उन्होंने हमें ग़लत साबित कर दिया।”

लौंगी भुइंया के काम की चर्चा अब आसपास के गांव के से निकलकर बाहर भी होने लगी है। गांव के लोग बताते हैं रोज़ कोई न कोई लौंगी से मिलने आता है। लौंगी भुइंया अति पिछड़े मुसहर समाज से आते हैं और उनके गांव की ज्यादातर आबादी भी इसी समाज के ही है।

प्रशासन ने कोई मदद क्यों नहीं?

लौंगी भुइंया और उनके गांव के लोंग इस बात पर बेहद ख़ुश है कि पहाड़ का पानी अब उनके खेतों तक आ गया है, लेकिन दूसरी तरफ जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के प्रति रोष भी है कि कई बार मदद मांगने के बावजूद भी कोई मदद नहीं मिली।

लौंगी खुद भी कहते हैं कि, “तब तो कोई नहीं ही आया, अब सब आ रहे है। कोई तो वादे करके जा रहा है पर मेरा काम तो पूरा हो गया। मुझे अब कुछ नहीं चाहिए, लेकिन मैं चाहता हूं कि मेरे परिवार को एक घर और एक शौचालय मिल जाए। मेरा घर मिट्टी का है, अब ढह रहा है, मैंने अगर पहाड़ काटने का काम नहीं किया होता तो अबतक घर बना लेता। मुझे कोई मेडल नहीं चाहिए एक ट्रैक्टर चाहिए ताकि खेती ‌आसान हो जाए।”

स्थानीय निवासी उमेश राम ने बताया कि इलाके के एसडीओ जानकारी मिलने पर लौंगी भुइंया से मिलने और उनका काम देखने आए थे। उन्होंने वादा किया है कि वे लौंगी की मांगों को पूरा करेंगे।
लौंगी भुइंया की ख़बर चर्चा में आने के बाद अब ज़िला प्रशासन भी हरक़त में आया है और उन्हें ‌सम्मानित करने की योजना भी बनाई जा रही है।

गया के इमामगंज प्रखंड के बीडीओ (जिनके सीमा क्षेत्र में ही लौंगी भुइंया के बनाए नहर का कुछ हिस्सा स्थित है) कहते हैं,- लौंगी भुइंया ने वीर पुरषों जैसा काम किया है, वे ना केवल बधाई के पात्र हैं बल्कि लोगों को उनसे प्रेरणा भी लेनी चाहिए व ऐसे पुरुषों को सम्मानित तो किया ही जाना ‌चाहिए।

“लौंगी भुइंया का यह काम जल जीवन हरियाली योजना के लिहाज़ से भी काफी महत्वपूर्ण और प्रेरनादायक है।”